Tuesday, April 12, 2016

आहत व्यासपोथी



आहत व्यासपोथी
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एक तख्ती की तरह जमाया
पहला मजबूत विश्वास
थोडा ठोका, दबाया
फिर विश्वास की जमायी
अगली तह
परत दर परत
विश्वास की तलछट चट्टान
किसी एक आंधी भरी शाम
ये व्‍यास  पोथी
हो गयी भुरभुरे शब्दों की
भंगुर किताब
एक तह के शब्द नश्तर हो
निचली तह में घुस गए
जंग खायी कील से पंक्चर
बियाबान में खड़ी गाडी सा बेबस भरोसा
भरोसे को रोयेदार होना चाहिए
लचीला
उसको किताबों सा तो बिल्कुल न होना था
बंद एक तरफ/खुला दूसरी ओर
शब्दों से बिंधा अनहद। 

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