Wednesday, January 13, 2016

आजादी मेरा ब्रांड- पढने के लिए हिम्‍मत जुटान

किसी भी स्‍त्री की कहानी पढ़ते हुए मुझे डर लगता है खासकर अगर कहानी में कोई सच्‍चाई हो, पुरुषों को स्त्रियों की कहानी से डरना ही चाहिए क्‍योंकि स्‍त्री की हर कहानी एक आरोपपत्र होती है, मुझे तो लगती है अपने पर। Anuradha Saroj की यायावारी आवारगी भी मैं तीन बार में कोशिश करके खरीद सका पहले दो बार राजकमल जाकर वापस आ गया, हिम्‍मत नहीं हुई...तीसरी बार बिटिया (तेरह साल) को साथ ले गया उसीसे खरीदवा ली... अनुराधा के बारे में जितना पता था वो उसे बताया और उसने -वाउ.. से अनुराधा का स्‍वागत किया..मैं भी ऐसा ही ट्रेवल करुंगी का घोष भी। दावे से नहीं कह सकता पर शायद अच्‍छा लगा।
अभी किताब को पढ़ना शुरू करना बाकी था और मुझे पता था ये मुश्किल होने वाला था...औरत की आज़ादी से हम सब डरते हैं। कहना मुश्किल है कि ये मेरा ही भय है कि किसी और के भी साथ ऐसा कुछ होता है लेकिन मुझे ज्ञात से भी भय होता है अज्ञात से दुनिया डरती ही है। मुझे पता था कि अनुराधा ने किताब में यात्रा को आ़जादी का रास्‍ता बनाया होगा और आज़ादी के साथ ही वो सब भी होगा ही सही मायने में औरत को गुलाम बनाता है... ये है तो आरोप जमाने पर ही पर इसी लिए मुझ पर भी है, होना ही चाहिए। मैं इसीलिए किताब पढ़ने से डर सा रहा था,  फिर से अपनी मिष्‍टी का ही सहारा लिया...मिष्‍टी तुमने किताब पढ़नी शुरू की ? आजा़दी मेरा ब्रांड, फेवरेट खोलकर दी... इतनी हिंदी की उसे आदत नहीं पर कोशिश की..लेकिन पेट में तितलियॉं उड़ने पर आकर अटक गई... अब हिम्‍मत का मौका मेरा था...लाओ मैं रीड करता हूँ...फिर मैं पढ़ने लगा... लड़को के साथ सोने के प्रकरण को कब डरपोक बाप 'लड़कों के साथ होना' पढ़ गया मुझे पता ही नहीं चला.. मिष्‍टी अब दूसरे कमरे में चली गई है और मुझे मालूम है कि आजादी का हर लफ्ज मुझ पर एक सवाल है पर मिष्‍टी के लिए जो दुनिया चाहिए उसके लिए जरूरी है कि सवालों से मुँह न मोड़ा जाए... इसलिए किताब पूरी तो पढ़ी ही जाएगी विद पेट में तितलियॉं...
अनुराधा मिष्‍टी की रमोना हो

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