Wednesday, December 16, 2015

तुम हो कि न हो

' अ ब्‍यूटीफुल माइंड' (रॉन हावर्ड, 2001) रह रहकर याद आ रही है। फिल्‍म में एक गणितज्ञ जॉन नैश के गणितज्ञ की कहानी दिखाई गई है जिसे बाद में नोबेल मिलता है। फिल्‍म में नैश जब एक शोधार्थी की तरह प्रिंस्‍टन विश्‍वविद्यालय आते हैं तो उनके रूममेट से बहुत सी बाते साझा करते हैं फिर बाद में वे एक खुफिया प्रोजक्‍ट पर काम भी करता है इसी क्रम में वह अपने रूममेट की नन्‍हीं भांजी से भी मिलता। फिल्‍म की असली परत तब खुलती है जब पता लगता है कि इतने जटिल संबंन्‍धों और जीवन को प्रभावित करने वाले ये लोग दरअसल कहीं थे ही नहीं। नैश जिनके साथ सालों रहता पढ़ता काम करता रहा वे वहॉं थे ही नहीं...ये सब बस उसके दिमाग की उपज थे, रीयल नहीं थे। उसे ये सब दिमाग की निर्मिति वाले शख्‍स इसी दुनिया में उन लोगों के साथ रहते लगते थे जो रीयल थे।
हमारे पास जो सब हैं वे रीयल में ठीक वैसे हैं जैसे हम उन्‍हें जानते हैं या फिर हमने ही उन्‍हें वैसा गढ़ रखा है, हमारी गढ़न की कैद में न केवल कैद हो रीयल नहीं हो पाते अपितु हम भी इस गढ़न की कैद में ऐसे फंसे हैं कि जो नहीं है उसे खोजने में लगे हैं और न मिलने पर छटपटाते हैं।

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