Tuesday, December 15, 2015

बुहरा इतिहास

मत मुड़ो
मत झुको
नीचे मत देखो
पदचिह्नों की भला कभी
किसी ने ली है जबाबदेही ?
हुई तो होगी बालू की
बालू के घरौंदे की
ऐसी भी कोई धँसता है धम्‍म से
एक कदम भर से।।

थामो गिरेबान
समुद्र का
इतना अथाह कि ले गया मेरी निगाहों को
साथ उस असीम अभिसार पर
इतना पास कैसे दिखता फिर

अगले ज्‍वार भर तक है यूँ भी
ये निशान भी घरौंदा भी
इतिहास घरौंदों को नहीं
क्षितिज राहियों को लिखता है।

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