Tuesday, August 19, 2014

रट मत - खटपट कर- चल अड़

राष्‍ट्रवादी दोस्‍त जिनमें मेरे कई अपने विद्यार्थी शामिल हैं अक्‍सर बेचैन हो जाते हैं जब उन्‍हें प्रतीत होता है की मेरे वक्‍तव्‍यों में 'राष्‍ट्रवाद' के लिए वो सम्‍मान नहीं दिखता जो उन्‍हें लगता है कि राष्‍ट्रवाद/देशभक्ति का स्‍वाभाविक हक है। मेरे लिए बड़े न होने की जिद में अड़े मित्रों से बस इतना कहना है कि राष्‍ट्र के प्रति अंधभक्ति बस उन प्रक्रियाओं की ओर इशारा भर करती है जो विभिन्‍न प्रतीकों से राष्‍ट्रवाद को अप्रश्‍नेय ''हॉली काऊ'' बनाकर पेश करता है। इस पर डाली गई हर सवालिया नजर को अवमानना से देखा जाता है। बावजूद इस तथ्‍य के सबके सामने होने के कि मध्‍ययुग में जितनी हत्‍याएं धर्म की बदौलत हुईं आधुनिक युग (जिसका उत्पाद 'राष्‍ट्र-राज्‍य' है) में इससे कहीं कम समय में राष्‍ट्रवाद ने इससे बहुत ज्‍यादा हत्‍याएं की हैं।
मेरे लिए राष्‍ट्र किसी भी तरह से राज्‍य के साथ हाईफनेट मातहत पद नहीं है। मेरे लिए राष्‍ट्र, जन से निसृत है तथा राज्‍य उसकी मातहत संरचना जैसे ही किसी ''राष्‍ट्रवाद'' का सहारा ले राज्‍य, राष्‍ट्र पर हावी होता है तुरंत ही राष्‍ट्रवाद सबसे बड़ा राष्‍ट्रद्रोह हो जाता है तथा ऐसे राष्‍ट्रराज्‍य की खिलाफत सबसे बड़ी देशभक्ति।
खैर राष्‍ट्रवाद पर हम सबकी राय मिले इसकी संभावना कम ही है। पर आप कम से कम इस बात की सराहना तो करेंगे कि जब से राष्‍ट्रभक्‍त सरकार के पदासीन होने की हवा चली... 'देशभक्‍त' एक व्‍यंजनापूर्ण डर्टी टर्म हो गई है (जैसे अच्‍छे दिन)!  

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