'अनभै सॉंचा' दिल्ली से निकलने वाली एक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका है। ताजा अंक में प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक ने आधुनिक कला की दो अहम पेंटिग्स फ्रांसिस्को गोया की '3 मई 1808 का नरसंहार' तथा पाब्लो पिकासो की 'गुएर्निका' का विवेचन है। ऐसा नहीं है कि इन पेंटिंग्स पर कम लिखा गया है पर हिन्दी में निश्चित तौर पर कम लिखा गया है। अत: सोचा कि गोया की पेंटिंग के विषय में अशोक भोमिक के विवेचन को आपके सामने रखा जाए।
फ्रांसिस्को गोया (1746-1828, स्पेन) को कला इतिहासकार निर्विवाद रूप से आधुनिक चित्रकला के जनक के रूप में जानते हैं। स्पेन का नेपोलियन के कब्जे में आना गोया के जीवन की अहम घटना थी। 3 मई 1808 का नरसंहार इसी क्रम की एक घटना रही। इस चित्र को मूल घटना के छ: वर्षों बाद बनाया गया लेकिन इससे इस चित्र की कलात्मक तीव्रता कम नहीं हुई है। मूल चित्र की छवि ये है-
गोया के इस चित्र में कई गौरतलब बातें हैं जो आम दर्शकों के लिए और समीक्षकों के लिए इस चित्र को इतना खास बनाती हैं।
1. चित्र में बाई आरे असहाय लोगों का झुंड है जहॉं कुछ लोग मारे जा चुके हैं कुछ लोग मर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जा मरने वाले हैं। इस सबके साथ साथ आतंकित कुछ और लोब भी हैं जो मारे नहीं जाएंगे पर संहार से भयभीत वे भी हैं। इन बाईं ओर के लोगों की संरचना में सीधी ज्यमितीय आकृतियॉं नहीं हैं। वे मुड़ी तुड़ी आकृतियों से बनी आक्रांत-आतंकित आकृतियॉं हैं।
2- दाहिनी ओर कतारबद्ध अतिकाय आकृतियॉं यीधी रेखाओं की ज्यमितीय आकारों से बनी सैनिकों की आकृतियॉ है जो बंदूक ताने हैं। पृष्ठभूमि में भी साधी रेखाओं से बनी महल की आकृति है जो इस हत्याकांड में में किस ओर है ये इसके ज्यमितीय होने से पता चलता है।
3- सैनिकों के पीछे का महल व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है।
4. चित्र के दोनों हिस्सों के संरचनात्मक व वर्गीय अंतर ही इस चित्र को गोया की महान रचना बनाते हैं। सैनिकों के चेहरे न दिखाकर गोया ने शोषण, संहार व अत्याचार के सहज दिखने वाले सतही माध्यमों को अनावश्यक महत्व न देते हुए संहार को संचालित करने वाली शक्तियों की ओर इशारा किया है।
5. चित्र में सबसे महत्वपूर्ण उपस्थिति सफेद कपड़ेवाले आदमी की है जो अत्याचार से भयभीत नहीं है।
6. जमीन पर रखी लालटेन से निकलता (पुन: सीधी रेखा में) प्रकाश भी महत्वपूर्ण युक्ति है जिसका इस्तेमाल गोया ने किया है।
कुल मिलाकर 3 मई 1808 दो सौ साल पहले की एक घटना का चित्रण भर नहीं है वरन चित्रकार की पक्षधरता व शोषण के तंत्र का शानदार दस्तावेज भी है।