Sunday, May 25, 2008

ऐसा कपूत आप ही रखें

कुछ मित्रों ने फोनकर बधाई दी...मुबारक आपको पला पलाया बेटा मिला है...‍अविनाश। हम भय से कॉंप गए...पता किया, पता चला कि अविनाश ने नीलिमा पर ये टिप्‍पणी की है-

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कुपुत्रों का होना एक सबसे बड़ी सजा मानी जाती है...अविनाश के माता-पिता जानें क्‍यों भुगत रहे होंगे पर अविनाश सा कपूत हमें नहीं चाहिए। वैसे अविनाश कोई भाषा को लेकर असावधान व्‍यक्ति नहीं है। जरा यशवंत के एसएमएस की भाषा के विश्‍लेषण को पढें  अविनाश जानते हैं और सही जानते हैं कि 'अपने परिवार का ध्‍यान रखना' का मतलब एक खतरनाक धमकी है। यूँ भी अपने लेखन में एक ए‍क नुक्‍ते का इतना ध्‍यान रखते हैं कि अजीतजी शाबासी देते होंगे। वैसे नुक्‍ते कठपिंगल की पोस्‍ट में भी एकदम सही लगे हैं, ये अलहदा बात है।

भाषा में इतने सचेत अविनाश पत्रकार, नई पत्रकार स्‍मृति दुबे को सनसनी गर्ल कहें और टोके जाने पर  नीलिमा को भूखा सांड और माताजी जैसी संज्ञाओं से अकारण नवाजने लगें ये पचता नहीं। इन 'मूर्ख' चोखेरबालियों को समझना चाहिए था कि जब इतना बड़ा यज्ञ चल रहा हो तो टोक नहीं लगानी चाहिए। इतनी मुश्किल से मौका मिला है ऐसे में ये कमअक्‍ल 'टोक गर्ल्‍स' मुदृदे को भटका रही हैं। यही कारण है संभवत पहली बार अविनाश ने अपने ब्‍लाग से कोई टिप्‍पणी मिटाई ये टिप्‍पणी नीलिमा ने की थी जिसमें कोई गाली गलौच नहीं थी।

कुछ अधिक गंभीर नजरिए से देखें तो ब्‍लॉगजगत में वर्चस्‍व की लड़ाई अब इतनी तीखी होने लगी है कि सामान्‍य शिष्‍टाचार तक लोग भूल रहे हैं...असहमति से सम्‍मान इतना कठिन भी नहीं। कोई झट से घोषित कर देता कि साथी ब्‍लॉगर/लेखिका ने बूढे प्रकाशक को साधकर अपनी किताब छपवाई, कोई दोस्‍ती निबाहने के लिए संघर्षरत पत्रकार को 'सनसनी गर्ल' घोषित करने पर उतारू है। और अब सिर्फ इसलिए कि आपको चोखेरबाली अपनी दुकानदारी के मुनासिब नजर नहीं आती इसलिए आप उन्हें भूखा सांड, माताजी और न जाने क्‍या क्‍या कहेंगे। अविनाश... थोड़ा थमो... यशवंत का यह कृत्‍य खुश्‍ा होने की नहीं चीज नहीं है (कि बच्‍चू अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे) वरन खेद की बात है। जैसे तुम्‍हें खेद है कि यशवंत कभी तुम्‍हारे मित्रवत रहा मझे भी ऐसे किसी संबंध का खेद है जो अविनाश से कभी रहे हों।

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Friday, May 23, 2008

शक्तिशाली पाखाना के बछड़े नहीं है या हार्स का गदहा है

नहीं समझ आया तो मतलब आप ठीक ही हैं...इसका मतलब नहीं ही है, समझ कैसे आएगा। मामला उस चिरकुटई का है जो चल रही है और हम चाह कर भी उससे दूर नहीं रह पा रहे हैं। बात शुरू हुई बोधि भाई की इस पोस्‍‍ट से पहुँची प्रमोद की इस पोस्‍ट तक और प्रत्‍यक्षा की इस पोस्‍ट तक। अनूप रहते ही है फुरसत में तो हौले से मौज ले गए। दूसरे चरण में बोधि ने जबाव दिया (अभी भी बोधि ब्‍लॉगर से पहले साहित्‍यकार हैं इसलिए हिन्‍दी साहित्‍य की कीचड़ होली से रोक नहीं पाते खुद को) इस चरण का जबाव प्रमोद तो दे चुके हैं बाकी की प्रतीक्षा (नहीं) है।

हम घुघुतीजी की परेशानी पर मुस्‍कराते रहे हैं जो समझने की कोशिश कर रही हैं कि भई ये चिरकुटई क्‍या बला है साथ ही डर रही हैं कि कहीं जो वे कर रहीं हैं वही तो नहीं :)।

मूल पचड़ा ये है कि लोकप्रियता व शास्‍त्रीयता का द्वंद्व जो साहित्‍य में अक्‍सर गढ़ा और गढ़ाया (पढ़ा और पढ़ाया भी) जाता है वह कितना कुछ लागू होता है ब्‍लॉगजगत पर। तुर्रा ये कि सारी बातें व चर्चा (या विवाद) की भाषा साहित्यिक शास्‍त्रीयता से ही रही। ब्‍लॉग शास्‍त्रीयता सिरे से गायब। विश्‍लेषण के औजार भी वहीं रहे। ज्ञानदत्‍तजी ने संकेत किया पर कौन सुनता है।

खैर होरी अपनी दुर्गति का विश्‍लेषण करने बैठता भी है तो अपने मरजाद के ही औजारों से... मारा जाता है बेचारा।

हमने सोचा कि ब्‍लॉग रिपोर्टर में रिपोर्ट किया जाए...मजाक नहीं है...अजदक..प्रत्‍यक्षा...बोधि के गद्य में कविता वाले विचार  तिसपर हमारी अंग्रेजी विकलांगता...खैर हमारी जो पोस्‍ट बनी वो ये है बांचे।

चूंकि गूगल ने अनुवाद दोनों सिरों में देना शुरू कर दिया है यानि हिन्‍दी से अंगेजी ही नहीं वरन अंग्रेजी से हिन्‍दी भी। तो सोचा लिखे का हिन्‍दी अनुवाद ही इस पोस्‍ट में ठेल देते हैं पर बाबा रे.. देखो क्‍या अनुवाद निकलकर आया-

ठीक है , यह एक कठिन हो जाएगा और फिर भी लिखने पढ़ने में मुश्किल है . कई कारणों से केवल एक व्याख्या करने के लिए ... मैंने सोचा शीर्षक उपयुक्त होगा Chirkutayi , Leed , साहित्य और Markhanyi ... ! कठिन अनुवाद करने के लिए मिला है . Google अनुवाद कर सकता है leed अनुवाद करने के लिए गोबर और साहित्य को साहित्य और Markhanayi छोड़ दिया गया है लेकिन chirkutayi बरकरार है , अछूते हैं . शायद रिपोर्ट करने के लिए मुश्किल होता है कि किस तरह हिंदी ब्लॉग पोस्ट कर रहे हैं .. यदि हम विशेष रूप से रिपोर्टिंग Azdak , प्रत्यक्ष , Bodhi ( गुम अभय यहां )
यह ठीक है इस पोस्ट के साथ शुरू Bodhi से चला गया .. इस से एक है और यह एक प्रमोद से प्रत्यक्ष ... Fursatiya winked यहाँ फिर Bodhi ने कहा ... ... वापस पुनः प्रमोद ने कहा है .
इससे पहले कि आप इन नीडिंत छोरों में प्राप्त खो दिया है , मुझे बनाने की एक बात स्पष्ट है .. यदि आप कुछ तकनीकी विशेषज्ञ हैं .. विलम्ब फिर उन बोरिंग है . hmm प्राप्त खो दिया है ... ( आप एक संकेत प्राप्त नहीं होगा ) और यदि आप कर रहे हैं जैसे Hindite मुझे ... क्या आप जानते हैं यह क्या चल रहा है .. Chirkutai . हाँ , यदि आप एक या एक उत्साही बॉर्डर लाइन के मामले की तरह Ghughuti बनाने की भावना को समझाते हैं तो यह है कि जब हम Hindite chirkutise हम bullshit ... हिंदी में कम की जा रही है शक्तिशाली पाखाना के बछड़े नहीं है या हार्स का गदहा है , इसलिए यह leed . और इस गदहा पाखाना प्रत्येक खिलाड़ी बैल की तरह व्यवहार करना चाहते हैं और वे अपने सींग तेज कर रहे हैं ... हम इस तरह ही है . : 0 )
?.... कुछ भी नहीं मिला था इसलिए मैं ने तुम से कहा था .

शीर्षक भी इसी से आया..।

Thursday, May 08, 2008

लघु कथा फिल्‍म : इस मीडिया विधा का स्‍वागत करें

क्‍या इसे नवीन विधा माना जाए? कहना कठिन है, लघु फिल्‍में पहले भी बनती रही हैं। छोटी फिल्‍में जो छोटे आयोजनों में दिखाई जाती हैं तथा अक्‍सर वृत्‍तचित्र की कोटि की होती हैं। लघु कथा फिल्‍में खर्च के लिहाज से महंगी होती है तथा उनपर रिटर्न काफी नहीं होती। लेकिन हाल में फिल्‍म उत्‍पादन की कीमत बहुत कम हुई है तथा इंटरनेट फिल्‍म डिलीवरी का लोकप्रिय जरिया बना है। अब छोटी छोटी कथा फिल्‍में बनाई जा रही हैं- व्‍यक्तिगत प्रयासों के तहत, ये इंटरनेट के ही लिए बन रही हैं। मुझे यह हिन्‍दी फिल्‍म यूट्यूब पर हाथ लगी। फिल्‍म की विषयवस्‍तु से बहुत आनंदित नहीं हुआ लेकिन विधा के तौर इस आकार और कोटि की फिल्‍म ऐसी लगी है जिसे बनाने की चेष्‍टा हम ब्‍लॉग भी कर सकते हैं। देखें चैक व मेट

निर्देशक : आशीष

 

 

 

Wednesday, May 07, 2008

हिन्‍दी में लिखें अंग्रेजी से पाठक लाएं- दोनों हाथों में लड्डू

हाल के दिनों में कई शानदार चीजें हो रही हैं।  सबसे महत्‍वपूर्ण तो लगा गूगल द्वारा हिन्‍दी से अंग्रेजी अनुवाद की सुविधा दिया जाना। जैसा कि आलोक ने बताया और हमने भी जॉचा कि अनुवाद मशीनी है और जाहिर है मशीनी जैसा ही है- उससे कविताओं के अनुवाद कर पाने की उम्‍मीद करना बेमानी है पर साधारण वाक्‍यों को ठीक ठाक अनूदित कर लेता है। ध्‍यान रहे कि हमारी सरकार भी सालों से माथापच्‍ची कर ही रही थी कि कम से कम सरकारी पत्रों के अनुवाद का औजार विकसित कर सके- किया भी पर कभी जनसाधारण में लोकप्रिय नही बनाया जा सका।

भाषायी अंतरण इंटरनेट के लिहाज से बहुत ही अहम बात है। खासकर भारत जैसे देश में जहॉं पूरा शिक्षित वर्ग कम से कम दो भाषाओं का जानकार है। अगर चिट्ठाकारी के लिहाज से देखें तो हम पाते हैं हिन्‍दी की चिट्ठाकारी की सीमा अब तक ये रही है कि एक निश्चित समुदाय है- पाठक, लेखक आदि सभी स्‍टेकहोल्‍डर इसी बंद समुदाय से हैं- हमारे पास आवारा पाठक नहीं हैं। मतलब ऐसे लोग जो बस घूमने के लिए इंटरनेट पर निकले... और वाह ये तो बड़ा अच्‍छा चिट्ठा है पढ़ा जाए। ऐसा अंग्रेजी के साथ होता है। और ऐसा भी नहीं है कि हिन्‍दी की सामग्री को खोजते लोग नहीं है- बस सर्च, कंटेंट, अंतरण के बीच समन्‍वय नहीं रहा है। एक जायजा लेने के लिए  देखें गूगलएनालिटिक्‍स में हमारे पिछले 11000 से कुछ अधिक विजिट (20 दिन में) के स्रोत क्‍या हैं-

ScreenHunter_01 May. 07 09.39

'हमारे' का मतलब यहॉं हिन्‍दी ब्‍लॉग रिपोर्टर है। इसकी अधिकांश सामग्री अलग अलग हिदी ब्‍लॉगों की सामग्री की संक्षिप्‍त समीक्षा ही होती है। यानि ब्रिज ब्‍लॉगिंग। इस अनुभव के बाद (जिसमें कमाई का अनुभव  भी शामिल है, हमारा पहला एडसेंस चेक रास्‍ते में है)  हमारा मानना है कि सर्च आकर्षित करने के लिए अपनी भाषा को खिचड़ी बनाने (और भाषा के साथ सांस्‍कृतिक बलात्‍कार करने से) कहीं अच्‍छा है कि अंग्रेजी की सर्च को किसी अन्‍य ब्रिज ब्‍लॉग पर आकर्षि‍त किया जाए तथा वहॉं से ट्रेफिक को अपने ब्‍लॉग पर भेजा जाए। अपने तईं हम ये काम हिन्‍दी ब्‍लॉग रिपोर्टर से कर ही रहे हैं। चूंकि भले ही ब्‍लॉग रिपोर्टर हिन्‍दी पर ही आधारित है पर चूंकि अंग्रेजी में  है इसलिए ब्‍लॉगवाणी या अन्‍य एग्रीगेटरों पर दिखाई नहीं देता है, आप इच्‍छुक हो तों उसकी फीड यहॉं सब्‍सक्राइब कर सकते हैं अथवा अपना ईमेल पता नीचे लिखें

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यदि आपने अभी कोई दमदार पोस्‍ट लिखी है तो आप एग्रीगेटरों के माध्‍यम से सैकड़ों पाठकों तक तो पहुँचेंगे ही पर वे तो बंधुआ पाठक हैं वही हिन्‍दी की गली वाले। नए पाठकों तक पहुँचने का एक रास्‍ता हम बताते हैं। इस नई पोस्‍ट का 200 शब्‍दों में अंगेजी में एक परिचय लिखें इसमें अपनी पोस्‍ट का लिंक भी दें और shabdashilp <dot> contribute <dot> blogger <dot> com पर ईमेल कर दें। आपकी पोस्ट हिन्‍दी ब्‍लॉग रिपोर्टर पर आएगी और हिन्‍दी पोस्‍ट का अंग्रेजी विज्ञापन सैकड़ों नए पाठकों तक पहुँच जाएगा और सर्च इंजिनों तक भी। यदि इस चिट्ठे के पेजरेंक को लेकर कोई भ्रम है तो कृपया इस पोस्‍ट को देखें। जब सारी दुंनिया blog by Amitabh खोज/लिख रही हो तो सर्च में पहले नंबर पर आना हंसी खेल नहीं है। तो देर किस बात की है- हिन्‍दी में लिखें अंग्रेजी से पाठक लाएं- दोनों हाथों में लड्डू।

Saturday, May 03, 2008

लीजिए इस वीडियो से जानें कि हमें क्‍यों गलिआया जा रहा है

कल से यशवंत तथा कई और भड़ासी हमें गलिया रहे हैं (वे कब नहीं गलियाते, किसे नहीं गलियाते) ये तब है जबकि हम खूब जानते हैं कि कम से कम हमारे और यशवंत के बीच ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ है कि आप हमें गालियों दो हम तुम्‍हें (हम नहीं कह रहे हैं कि यशवंत व अविनाश के बीच ऐसा कोई समझौता है)। पर ये थोक गालियॉं क्‍यों आ रही हैं ? जाहिर है कि एक वजह तो आदत है और दूसरी है कल NDTV पर हुई चर्चा। आप में से कुछ ने चर्चा देखी थी बाकी क्रिकेट मैच देख रहे होंगे। हम भी चर्चा में नहीं होते तो मैच ही देख रहे होते। खैर हमें बताया गया था कि चर्चा हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग पर होगी किंतु हमें ऐसा कोई भ्रम न था हम ताड़ चुके थे इसलिए जाते ही पूछा कि अमिताभ के ब्‍लॉग का ही मामला है न ...खैर हमें बताया गया कि हॉं वही और ये कि क्‍या ब्‍लॉग भड़ास है। अपनी भड़ास मसले पर हमेशा से राय रही है कि भड़ास ब्‍लॉगिंग का एक स्‍वाभाविक सोपान है जिसे मटिआया नहीं जा सकता, नहीं जाना चाहिए- ये भी कि भड़ास तत्‍व की स्‍वाभाविक एंट्रापी आकार बढ़ने पर पोजीटिव हो जाती है तथा वह अस्थिर हो जाता है। हमले भड़ासत्‍व को मजबूत बनाते हैं जबकि उसके प्रति सहज होना उसकी जरूरत को खुद ब खुद कम कर देता है। इसी किस्‍म की राय हमने वहॉं भी रखी थी(इससे कहीं कम मौका मिला इसलिए इससे कम स्‍प्‍ाष्‍ट रूप में कह पाए)।

आप इन वीडियो में इस चर्चा को देख सकते हैं-







ब्रेक के बाद