Monday, September 03, 2007

मुँह चुराना बेकार है...सच है कि उमा खुराना हमारे ही बीच से है

हम दु:खी थे कि बाय डिफाल्‍ट इज्‍जतदार शिक्षक वर्ग से हैं इसलिए सड़क चलते भी कभी कभी सतर्क रहना पड़ता है। पर दिल्‍ली की ही शिक्षक बिरादरी से एक शिक्षिका का आस्‍था ऐसे किसी विचार में नहीं निकली। उमा खुराना नाम की यह गणित शिक्षिका अपनी विद्यार्थियों को डरा ध‍मकाकर जिस्‍मफरोशी में धकेलती थी।  तुर्कमान गेट के जिस स्‍कूल की इस गणित शिक्षिका की हरकतें पूरे मीडिया पर दिखाई गईं वह हमारे कॉलेज से फर्लांग भर से भी कम दूरी पर है- स्‍कूल हज मंजिल के सामने है और इलाका इतना संवेदनशील है कि गाय गोबर कर दे तो घटना सांप्रदायिक मान ली जाए,  इस घटना में इस स्‍कूल की किसी लड़की का नाम नहीं है पर आस पास के हल्‍ले की शुरूआत इसी आशंका से हुई थी कि यह महिला इस स्‍कूल की बच्चियों को वेश्‍यावृत्ति में धकेल रही थी- मामले की जॉंच जारी है पर इतना तय है कि ये हमारी जो शिक्षक बिरादरी है जिसके हम भी बाकायदा हिस्‍से हैं यह पिछले कुछ अरसे से खूब धतकरम करने पर उतारू है। पहले भी दिल्‍ली के सरकारी स्‍कूल का का एक हेडमास्‍टर इसी तरह के कर्म में लिप्‍त पाया गया था।

बाहर बहुत कुछ कहा जा रहा है, उस पर क्‍या कहें। लोगों का कहना है कि ये शिक्षक-छात्र संबंधों के ताबूत की अ‍ाखिरी कील है।  जनता में गुस्‍सा है, सरकार में भी और कानून तो जो और जैसे करेगा वो करेगा ही (दिल्‍ली में इम्‍मोरल ट्रेफिकिंग के केसों में कन्विक्‍शन की दर बहुत ही कम है) पर हमें सबसे खतनाक वह चुप्‍पी लगती है जो इस तरह की घटनाओं के बाद शिक्षक समुदाय में आंतरिक रूप से देखने को मिलती है। ये ऑंख चुराने की प्रवृत्ति है। जब हेडमास्‍टर अपने स्‍कूल में ही व्‍यभिचार में लिप्‍त पाया गया था तब हम एक स्‍कूल के अध्‍यापक थे- अगले दिन स्‍कूल के अध्‍यापक स्टाफ रूम में इस घटना पर किसी चर्चा से बचने की कोशिश में दिखे और अब यही प्रवृत्ति कॉलेज के स्‍टाफ रूम में भी थी। यह सही है कि विश्‍वविद्यालय का प्रशासन इस तरह की घटनाओं के लेकर अधिक कड़ा रवैया अपनाता है- बाकायदा एक ढॉंचा है जो इस तरह की शिकायतों को देखता है- पिछले ही दिनों दो प्रोफेसरों को बर्खास्‍त करने का निर्णय लिया गया तथा एक के खिलाफ कार्यवाही  अभी जारी है। पर फिर भी जिस तरह का 'ज़ीरो टाल्‍रेंस'    होना चाहिए वह अभी दिखता नहीं।

7 comments:

ghughutibasuti said...

घटनाएँ शायद सदा होती रही होंगी पर पहले वे दबा छिपा दी जाती होंगी । घटना शर्मनाक है । मैं तो इतना जानती हूँ कि बच्चों के मामले में किसी पर भी विश्वास करना कठिन है । आज से २० वर्ष पहले भी जब मेरे बच्चे सड़क पर अकेले खड़े बस की प्रतीक्षा करते थे तो मेरा कड़ा निर्देश था कि वे स्कूल के अन्दर प्रतीक्षा नहीं करेंगे । किसी अध्यापक, अध्यापिका, चपरासी , चौकीदार के कहने पर अन्दर नहीं जाएँगे । यदि बस छोड़ के निकल जाए तो हमारी प्रतीक्षा करेंगे ।
घुघूती बासूती

Anita kumar said...

इस घटना की जानकारी हमें पहले नहीं थी, आपके लेख से ही पता चला,सच में ज्ञकज्ञोर के रखने वाली खबर है। आप सही कह रहे हैं उससे भी खतरनाक है हम लोगों की चुप्पी। आज हर प्रोफ़ेशन और हर आदमी की कीमत पैसे से तोली जाती है और हर कोई जल्द से जल्द अमीर बनने के चक्कर में है, चाहे कैसे भी, उसी का नतीजा है ये,

Rachna Singh said...

खो रहे है रिश्ते

एक समय था
जब माँ के घर से जो आता था
मौसी मामा नानी नाना
कहलाता था
पूरा पडोस मायेका होता था
पिता के दोस्त चाचा ताऊ होते थे
जिनके कंधे पर चढ़ता था बचपन
आस पड़ोस मे लडकिया नहीं
बुआ , मौसी , मामी , चाची रहती थी
जिनकी गोदीयों मे सुरक्षित
रहता था बचपन
हमे तो मिले है संस्कार बहुत
क्या हम दे रहे है अगली पीढ़ी को
एक डर एक सहमा हुआ बचपन
क्यो खो रहे है रिश्ते
ज़िन्दगी की भीढ़ मे

Udan Tashtari said...

दो रोज पहले इस घटना को टीवी पर देखता था. शिक्षक भी तो इन्सान ही हैं और इन्सान ही सारे कृत्य करता है. किस हद तक गिर जाये इसका कोई मानक नहीं है.

Shastri JC Philip said...

"पर फिर भी जिस तरह का 'ज़ीरो टाल्‍रेंस' होना चाहिए वह अभी दिखता नहीं।"

आप ने इन पंक्तियों मे जो कहना चाहा है, एक सह अध्यापक की हैसियत से, मैं उसका अनुमोदन करत हूं -- शास्त्री

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!

Anita kumar said...

लिजिए मसिजीवी जी
अब पेपर वाले कह रहे है कि उमा निर्दोष है और उसे उसी के वाइस प्रिंसिपल ने फ़सवाया था। पूरी खबर झूठ पर आधारित थी, तो अब क्या कहेगे आप

मसिजीवी said...

अनिताजी,

हम इस लेख की हर उस पंक्ति के लिए खेद व्‍यक्‍त करते हैं तथा कर चुके हैं जिससे उमा के दोषी होने की घ्‍वनि निकलती है।
http://masijeevi.blogspot.com/2007/09/blog-post_7841.htm